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आचार्य सुनिलसागर के सानिंध्य में विश्वशांति हेतु महा शांतिधारा का आयोजन

Pratapgarh
आचार्य सुनिलसागर के सानिंध्य में विश्वशांति हेतु महा शांतिधारा का आयोजन
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प्रतापगढ़। नगर से चित्तोड़गढ़ मार्ग पर बमोतर में स्थित प्रभु श्री 1008 शांतिनाथ भगवान के अतिशय क्षेत्र में ससंघ विराजित अंकलिकर के चतुर्थ पट्टाधीश राष्ट्रगौरव, चर्याचक्रवर्ती, संयमभूषण, सिंद्धान्त पारंगत, प्राकृत ज्ञान केसरी आचार्य श्री 108 सुनील सागर जी महाराज ससंघ के पावन सानिंध्य में आज कोरोना वायरस के कहर एवँ मानवता के दुश्मनों द्वारा रची जा रही साजिशों के कारण थर थर काँप रही मानवता एवँ प्राणी मात्र की रक्षा के साथ विश्वशांति की भावना को लेकर भगवान श्री 1008 शांतिनाथ प्रभु की महा शांति धारा एवँ शांति विधान का आयोजन किया गया। इस अवसर पर आचार्य श्री ने अपनी अमृतमय वाणी में विश्वशांति हेतु संदेश दिया कि जैन धर्म ने प्राणिमात्र के जीवन की रक्षा के भाव को लेकर जिओ ओर जीने दो के सिंद्धान्त को विकसित किया प्रभु की बनाई इस सृष्ट्री में जितना जीने का अधिकार हमको है उतना ही अधिकार सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव से लेकर विशालतम काया वाले जीवों को भी है हम अपने संसार में जिये दूसरे जीवों को हानि ना पहुँचाते हुए उन्हें उनके संसार में सुरक्षित जीवन जीने दे जीव मात्र के प्रति करुणा का भाव रखें तो दुनिया के किसी भी प्राणी के प्राण कोरोना तो ठीक साधारण बीमारी से भी संकट में नही पड़ सकते, किन्तु इंसान के रूप में जन्म लेकर अपनी शक्ति के अभिमान में चूर इंसानियत को छोड़कर शैतानियत पर उतर आए कुछ शैतानों की  दुष्ट करतूत का खामियाजा आज पूरी दुनिया भगत रही है। करुणा से रहित कोरोना वायरस को दुनिया भर में फैलाने वाले शैतानों की शैतानियत के कारण  हमेशा आपस में प्रेम, वात्सल्य करुणा के साथ साथ सह अस्तित्व के लिए एक दूसरे के साथ रहने का संदेश देने वाले सभी धर्म गुरुओं को भी अभी यह अपील करनी पड़ रही है कि अगर हमें प्रेम के साथ जीवित रहना है तो जब तक यह वायरस जिंदा है एक दूसरे से निश्चित दूरी बनाकर रहो दूर से अभिवादन करो एक दूसरे को छूने से बचो इत्यादि। आचार्य श्री ने कहा कि इस शैतानी वायरस का अभी तक कोई इलाज नही बन पाया है। दुनियाभर के वैज्ञानिक लगातार मेहनत कर रहे हैं ईश्वर की मेहरबानी ओर करोड़ो लोगो के साथ सम्पूर्ण मानवता की प्रार्थनाएं उनके साथ हैं आशा है शीघ्र उनको सफलता मिल जाएगी किन्तु तब तक इस वायरस से बचाव ही एकमात्र उपाय है। चूंकि इस संक्रामक वायरस का संक्रमण एक दूसरे को छूने से फैलता है इसलिए इसके संक्रमण को रोकने के लिए इसको हराने के लिए  हमें देश की प्रधानमंत्री एवँ केंद्र तथा राज्य सरकारों के द्वारा दिये जा रहे दिशा निर्देशों का अक्षरसः पालन करना चाहिए 21 दिन का यह लॉक डाउन सफल बनाकर इस संक्रमण को रोका जा सकता है। तेजी से पाश्चात्य अंधानुकरण में डूबी हुई मानव सभ्यता को यह लॉक डाउन अपनी आध्यात्मिकता को जागृत करने अपने आपको अपनी आत्मा को जानने तथा विकास की दौड़ से अलग होकर स्व कल्याण हेतु प्रभु आराधना करने में लगाने का एक स्वर्णिम अवसर उपलब्ध करवा रहा है हमे अधिक से अधिक इस अवसर का सदुपयोग करके मानवता के हित में पुरुषार्थ करने का प्रयास करना चाहिए यही मंगल कामना।

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