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दशहरा विजयादशमी

Banswara
दशहरा विजयादशमी
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दशहरा विजयादशमी  (Dashhera Vijayadashmi) 

बुरे पर अच्छाई की जीत का प्रतिक दशहरा पर्व

दशहरा (विजयादशमी या आयुध-पूजा) अश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है।

भगवान राम ने इस दिन रावण का वध किया था और देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरान्त महिषासुर पर विजय भी इसी दिन प्राप्त की थी। इसे बुरे पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को 'विजयादशमी' के नाम से जाना जाता है (दशहरा = दशहोरा = दसवीं तिथि)। दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा।

वाल्मीकि रामायण में एक दोहा है जिसमे भगवान् राम कहते हैं की उनका संकल्प है जो एक बार मेरी शरण में आकर “मैं तुम्हारा हूँ“ कहकर मुझसे अभय मांगता है उसे मैं सभी प्राणियों से निर्भय कर देता हूँ यही विजयादशमी में भगवन राम का सन्देश है.

 

बांसवाडा में दशहरा

1985 से पूर्व रावण दहन का पर्व अभी स्थित रोडवेज बस सर्विस गैराज की जगह खुले मैदान में दक्षिण कलिका माता मंदिर के पीछे किया जाता था, जहाँ शहर की व्यवस्था को देखते हुवे 1985 से यह पर्व कॉलेज मैदान में नगर पालिका व वर्तमान में नगर परिषद् के द्वारा पूरा किया जाता है.

विजय की भावना व्यक्ति और राष्ट्र को उल्लास और उमंग के वातावरण से सराबोर कर देती है। विजयदशमी एक ऐसा पर्व है, जो असलियत में हमारी राष्ट्रीय अस्मिता और संस्कृति का प्रतीक बन चुका है। सदियां बीत चुकी हैं, लेकिन रावण पर राम की विजय का यह पर्व हम आज भी उसी उल्लास और उमंग के साथ मनाते हैं। अक्सर रावण दहन कर हम सत्य के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं। विजयदशमी का एक ही कारण है और वह है राम की विजय। इसीलिए इसे विजय पर्व के नाम से जाना जाता है। यथार्थ में श्रीराम मात्र रावण विजेता नहीं थे, वह कर्म विजेता थे। उन्होंने शत्रु यानी दुराचार, अधर्म और असत्य को परास्त कर धर्म, सदाचरण और सत्य की प्रतिष्ठा की। लंका काण्ड के अंत में वर्णित दोहे-समर विजय रघुवीर के चरित जे सुनहिं सुजान। विजय विवेक विभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान के अनुसार, विजय, विवेक और विभूति, तीनों का मानव जीवन में बड़ा महत्व है। ये चीजें उन्हीं को प्राप्त होती हैं, जो सुजान होते हैं। यहां सुजान का तात्पर्य है सद्कर्म करने वाला, सदाचरण का पालन करने वाला। विजय पर्व का उत्सव तो एक-दो दिन का होता है, पर यथार्थ में मानव के संपूर्ण जीवन में इन तीनों की परीक्षा पल-पल होती है। वस्तुत: अंदर के रावण पर विजय ही जीवन का मूल है। प्रश्न यह है कि क्या रावण पर विजय संभव है? सत्य के मार्ग का अवलंबन किए बिना तो कदापि नहीं।

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