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मकर संक्रांति

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मकर संक्रांति (Makar Sankranti)

Makar Sankranti is a Hindu festival celebrated in almost all parts of India and Nepal in a myriad of cultural forms. It is a harvest festival.

Makar Sankranti marks the transition of the Sun into the zodiac sign of Makara rashi (Capricorn) on its celestial path. The day is also believed to mark the arrival of spring in India and is a traditional event. Makara Sankranthi is a solar event making one of the few Indian festivals which fall on the same date in the Gregorian calendar every year: 14 January, with some exceptions when the festival is celebrated on 13 or 15 January.

हिंदू धर्म में सूर्य देवता से जुड़े कई त्योहार मनाने की परंपरा है। उन्हीं में से एक मकर संक्राति भी है। जब भगवान सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में आते हैं तो इसे मकर संक्रांति के रूप में देशभर में मनाया जाता है। इस पर्व पर सूर्य पूजा के साथ ही पवित्र नदियों में स्नान और श्रद्धा अनुसार जरूरतमंद लोगों को दान करने की प्राचीन परंपरा है। मान्यता है कि इस दिन किया गया दान कई गुना होकर वापस लौटता है।

देवताओं के दिन की शुरुआत
इस संबंध में मान्यता है कि सूर्य के उत्तरायण होने से देवताओं के दिन की शुरुआत हो जाती है। इस वजह से इस पर्व का खास महत्व है। खरमास के कारण 16 दिसंबर से बंद चल रहे मांगलिक काम मकर संक्रांति के बाद शुरू हो जाएंगे। मकर संक्रांति के बाद ही ग्रह प्रवेश, शादी-विवाह एवं नए व्यापार का शुभ मुहूर्त है।

तिल से बनी चीजों का करते हैं दान
मान्यता है कि सूर्य के उत्तरायण होने से मनुष्य की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। मकर संक्रांति पर्व पर तिल और गुड़ से बनी चीजों का दान करना चाहिए। धर्म ग्रंथों के मुताबिक इस दिन तिल का दान करने से जाने-अनजाने हुए पाप खत्म तो खत्म होते ही हैं साथ ही तिल दान से कई गुना पुण्य मिलता है। जिससे समृद्धि और सौभाग्य बढ़ता है।

भीष्म पितामह ने चुना था उत्तरायण
मान्यता है कि मकर संक्रांति से सूर्य की किरणें सेहत ओर शांति बढ़ाती हैं। पौराणिक कथा के मुताबिक महाभारत काल में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही अपनी इच्छा से शरीर का परित्याग किया। ऐसी भी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ ऋषि के पीछे-पीछे चलकर कपिल ऋषि के आश्रम में आई थीं।

आत्मोद्धारक व जीवन-पथ प्रकाशक पर्व – मकर संक्रांति
जिस दिन भगवान ? सूर्यनारायण उत्तर दिशा की तरफ प्रयाण करते हैं, उस दिन नारायण (मकर संक्रांति) का पर्व मनाया जाता है | इस दिन से अंधकारमयी रात्रि कम होती जाती है और प्रकाशमय दिवस बढ़ता जाता है | उत्तरायण का वाच्यार्थ है कि सूर्य उत्तर की तरफ, लक्ष्यार्थ है

सम्यक क्रांति.... ऐसे तो हर महीने संक्रांति आती है लेकिन मकर संक्रांति साल में एक बार आती है | उसी का इंतजार किया था भीष्म पितामह ने | उन्होंने उत्तरायण काल शुरू होने के बाद ही देह त्यागी थी |

पुण्यपुंज व आरोग्यता अर्जन का दिन
? संक्रांति का स्नान हमें रोगों आदि से मुक्त करता है| संक्रांति के दिन उबटन लगाये, जिसमे काले तिल का उपयोग हो |
? भगवान सूर्य को भी तिलमिश्रित जल से अर्घ्य दें | इस दिन तिल का दान पापनाश करता है, तिल का भोजन आरोग्य देता है, तिल का हवन पुण्य देता है | पानी में भी थोड़े तिल डाल के पियें तो स्वास्थ्यलाभ होता है | तिल का उबटन भी आरोग्यप्रद होता है | तिल और गुड के व्यंजन, चावल और चने की दाल की खिचड़ी आदि ऋतू-परिवर्तनजन्य रोगों से रक्षा करती है | तिलमिश्रित जल से स्नान आदि से भी ऋतू-परिवर्तन के प्रभाव से जो भी रोग-शोक होते है उनका नाश करता है |

 

? सूर्यदेव की विशेष प्रसन्नता हेतु मंत्र
ब्रम्हज्ञान सबसे पहले भगवान सूर्य को मिला था | उनके बाद रजा मनु को, यमराज को.... ऐसी परम्परा चली | भास्कर आत्मज्ञानी हैं, पक्के ब्रम्ह्वेत्ता हैं | बड़े निष्कलंक व निष्काम हैं | कर्तव्यनिष्ठ होने में और निष्कामता में भगवान सूर्य की बराबरी कौन कर सकता है ! कुछ भी लेना नहीं, न किसीसे राग है न द्वेष हैं | अपनी सत्ता-समानता में प्रकाश बरसाते रहते हैं, देते रहते हैं |
‘पद्म पुराण’ में सूर्यदेवता का मूल मंत्र है : ॐ ह्रां ह्रीं स: सूर्याय नम: |  अगर इस सूर्य मंत्र का ‘आत्मप्रीति व आत्मानंद की प्राप्ति हो’ – इस हेतु से भगवान भास्कर का प्रीतिपूर्वक चिंतन करते हुए जप करते हैं तो खूब प्रभु-प्यार बढेगा, आनंद बढेगा |

 

? ओज-तेज-बल का स्त्रोत : सूर्यनमस्कार
सूर्यनमस्कार करने से ओज-तेज और बुद्धि की बढ़ोतरी होती है | ॐ सूर्याय नम: | ॐ भानवे नम: | ॐ खगाय नम: ॐ रवये नम: ॐ अर्काय नम: |..... आदि मंत्रो से सूर्यनमस्कार करने से आदमी ओजस्वी-तेजस्वी व बलवान बनता है | इसमें प्राणायम भी हो जाता है, कसरत भी हो जाती है |
सूर्य की उपासना करने से, अर्घ्य देने से, सूर्यस्नान व सूर्य-ध्यान आदि करने से कामनापूर्ति होती है | सूर्य का ध्यान भ्रूमध्य में करने से बुद्धि बढती है और नाभि-केंद्र में करने से मन्दाग्नि दूर होती है, आरोग्य का विकास होता है |

 

? आरोग्य व पुष्टि वर्धक : सूर्यस्नान

सूर्य की धुप में जो खाद्य पदार्थ, जैसे-घी, तेल आदि 2 – 4 घंटे रखा रहे तो अधिक सुपाच्य हो जाता है | धुप में रखे हुए पानी से कभी –कभी स्नान कर सकते है | इससे सुखा रोग (Rickets) नहीं होता और रोगनाशिनी शक्ति बरक़रार रहती है |

? सूर्य की किरणों से रोग दूर करने की प्रशंसा ‘अथर्ववेद’ में भी आती है | कांड – १, सूक्त २२ के श्लोकों में सूर्य की किरणों का वर्णन आता है | मैं 15-20 मिनट सूर्यस्नान करता हूँ | लेटे–लेटे सूर्यस्नान करना और भी हितकारी होता है लेकिन सूर्य की कोमल धुप हो, सूर्योदय से एक-डेढ़ घंटे के अंदर-अंदर सूर्यस्नान कर लें | इससे मांसपेशियाँ तंदुरस्त होती हैं, स्नायुओं का दौर्बल्य दूर होता हिया| सूर्यस्नान का यह प्रसाद मुझे अनुभव होता है | मुझे स्नायुओं में दौर्बल्य नहीं है | स्नायु की दुर्बलता, शरीर में दुर्बलता, थकान व कमजोरी हो तो प्रतिदिन सूर्यस्नान करना चाहिए | 

? सूर्यस्नान से त्वचा के रोग भी दूर होते हैं, हड्डियाँ मजबूत होती हैं | रक्त में कौल्शियम, फ़ॉस्फोरस व लोहें की मात्राएँ बढती हैं, ग्रंथियों के स्त्रोतों में संतुलन होता है | सूर्यकिरणों से खून का दौरा तेज, नियमित व नियंत्रित चलता है | लाल रक्त कोशिकाएँ जाग्रत होती हैं, रक्त की वृद्धि होती है | गठिया, लकवा और आर्थराइटिस के रोग में भी लाभ होता है | रोगाणुओं का नाश होता है, मस्तिष्क के रोग, आलस्य, प्रमाद, अवसाद, ईर्ष्या-द्वेष आदि शांत होते हैं | मन स्थिर होने में भी सूर्य की किरणों का योगदान है | नियमित सूर्यस्नान से मन पर नियंत्रण, हार्मोन्स पर नियंत्रण और त्वचा व स्नायुओं में क्षमता, सहनशीलता की वृद्धि होती है |

? नियमित सूर्यस्नान से दाँतों के रोग दूर होने लगते हैं | विटामिन ‘डी’ की कमी से होनेवाले सुखा रोग, संक्रामक रोग आदि भी सूर्यकिरणों से भगाये जा सकते हैं |

? अत: आप भी खाद्य अन्नों को व स्नान के पानी को धुप में रखों तथा सूर्यस्नान का खूब लाभ लो |

 

दृढ़ संकल्पवान व साधना में उन्नत होने का दिन
? उत्तरायण यह देवताओं का ब्राम्हमुहूर्त है तथा लौकिक व अध्यात्म विद्याओं की सिद्धि का काल है | तो मकर संक्रांति के पूर्व की रात्रि में सोते समय भावना करना कि ‘पंचभौतिक शरीर पंचभूतों में, मन, बुद्धि व अहंकार प्रकृति में लीन करके मैं परमात्मा में शांत हो रहा हूँ | और जैसे उत्तरायण के पर्व के दिन भगवान सूर्य दक्षिण से मुख मोडकर उत्तर की तरफ जायेंगे, ऐसे ही हम नीचे के केन्दों से मुख मोडकर ध्यान-भजन और समता के सूर्य की तरफ बढ़ेंगे | ॐ शांति .... ॐ आनंद .... ‘

? रात को ‘ॐ सूर्याय नम: |’ इस मंत्र का चिंतन करके सोओगे तो सुबह उठते-उठते सूर्यनारायण का भ्रूमध्य में ध्यान भी सहज में कर पाओगे | उससे बुद्धि का विकास होगा |

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