कोर्ट के स्टे के बाद फिर से बोली नगर परिषद् सभापति में भाजपा में, भाजपा जिलाध्यक्ष बोले पार्टी कोई धर्मशाला नहीं है कि जब चाहे कोई आए और जब चाहे चला जाए
नगर परिषद सभापति रामकन्या गुर्जर ने बुधवार को अपने दो समर्थक पार्षदों के साथ फिर से भाजपा में आने का दावा किया है. हालांकि भाजपा जिलाध्यक्ष गोपाल कुमावत ने कहा कि अभी सभापति का भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने संबंधी कोई आवेदन नहीं आया है. इसलिए अभी यह नहीं कहा जा सकता कि वे भाजपा में है. इधर, नगर परिषद में बोर्ड की दलीय स्थिति को लेकर भी असमंजस पैदा हो गया है. फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि बोर्ड भाजपा का है या कांग्रेस का. सभापति रामकन्या गुर्जर ने अपने कार्यालय में प्रेस कांफ्रेंस की. इसमें उन्होंनेे कहा कि वे पहले से ही भाजपा की थी और अब भी भाजपा में ही है. विधायक रामलाल मीणा का नगर परिषद में दखल था. इसके चलते वे विकास के काम नहीं कर पा रही थी. विधायक के दबाव और शहर के विकास को ध्यान में रखते हुए वे कांग्रेस में गई थी. लेकिन उन्होंनेे कभी भाजपा से त्यागपत्र नहीं दिया था. अब भाजपा संगठन के आदेशनुसार काम करेगी.
पत्रकार वार्ता के दौरान सभापति रामकन्या, उनके पति प्रहलाद गुर्जर और एक महिला पार्षद सहित दो पार्षद मौजूद थे. भारतीय जनता पार्टी का नगर मंडल और जिला स्तरीय कोई पदाधिकारी नहीं था. हालांकि मंगलवार को जब उन्होंनेे कार्यभार ग्रहण किया तब भाजपा के नगर मंडल अध्यक्ष रितेश सोमानी सहित कई कार्यकर्ता मौजूद थे. लेकिन आज इनमें से कोई नहीं था. इस सारे घटनाक्रम के बाद नगर परिषद बोर्ड में बहुमत को लेकर भी कानूनी संकट पैदा हो गया है. सभापति ने दावा किया कि उन्होंने भाजपा से त्यागपत्र ही नहीं दिया. इतना ही नहीं, उनके कांग्रेस की सदस्या फार्म में दस्तखत भी उनके नहीं है. जबकि वे कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा की मौजूदगी में पार्टी में शामिल हुई थी. इधर भाजपा ने फिलहाल उन्हें ‘अपना’ मानने से इनकार कर दिया है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि वर्तमान में बोर्ड में बहुमत किसका है, भाजपा का या कांग्रेस का? इस मामले में भाजपा जिलाध्यक्ष गोपाल कुमावत ने बताया कि सभापति रामकन्या गुर्जर का पार्टी में शामिल होने के लिए उनके पास कोई आवेदन नहीं आया है. प्रदेश स्तर पर भी सभापति के पार्टी में शामिल होने की कोई सूचना नहीं है. यदि उनका आवेदन आएगा तो सभी पहलुओं पर विचार कर निर्णय किया जाएगा. क्योंकि पार्टी कोई धर्मशाला नहीं है कि जब चाहे कोई आए और जब चाहे चला जाए. पार्टी के प्रति निष्ठावान रहना और पार्टी के मूल्यों को मानना जरूरी है.