कोरोना वायरस संक्रमण के लिए जिम्मेदार नहीं है चमगादड़ - डॉ. एस.पी.मेहरा
उदयपुर, 7 मई/देश के ख्यातनाम पक्षी विज्ञानी एवं राजपूताना सोसायटी ऑफ नेचुरल हिस्ट्री, राजस्थान के संस्थापक व सीईओ डॉ. एस.पी.मेहरा ने कोविड-19 के वन्यजीवों के साथ संबंधों व प्रकृति आधारित हस्तक्षेप विषय पर अपने शोध के आधार पर दावा किया है कि कोरोना वायरस के मनुष्यों में संक्रमण के लिए चमगादड़ या अन्य वन्यजीव को जिम्मेदार मानना सही नहीं है।
उन्होंने डॉ. सरिता मेहरा के साथ किए गए अपने शोध समीक्षा में कोरोना वायरस के विभिन्न प्रकारों और इसके मानव पर प्रभावों का समीक्षात्मक विश्लेषण करते हुए बताया है कि वन्यजीवों को जिम्मेदार मानकर मनुष्य अपनी भूलों पर पर्दा डाल रहा है।
सॉर्स और मर्स संक्रमण भी कोरोना वायरस का एक स्वरूप:
डॉ. मेहरा ने बताया कि कोरोना वायरस विषाणु का एक स्ट्रेन है जो मनुष्य के श्वसन तंत्र में संक्रमण फैलाता है। उन्होंने इक्कीसवीं सदी में कई वायरस के संक्रमण से मानव जाति पर आए हुए खतरे के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि वर्ष 2002 में सॉर्स नामक संक्रमण ने अनेक देशों में महामारी फैलाई थी और इसके संक्रमण के लिए सॉर्स कोव-1 को जिम्मेदार माना गया जो कि कोरोना वायरस का एक प्रकार है। इस महामारी ने धीमी गति से अनेक देशों में 8 हजार से अधिक लोगों को संक्रमित किया।
इसी प्रकार वर्ष 2012 में मर्स (मिडिल ईस्ट रेसपिरेटरी सिंड्रोम) नामक संक्रमण ने अनेक मध्यपूर्वी अरेबियन देशों में महामारी को जन्म दिया। मर्स के लिए मर्स कोव वायरस जिम्मेदार माना गया, जो कि कोरोना वायरस का ही एक प्रकार है। इस महामारी से मध्य खाड़ी देशों के 2500 से अधिक लोग संक्रमित हुए।
उन्होंने बताया कि वर्ष 2019 में कोरोना वायरस के एक और नए स्ट्रेन ने सदी के प्रारंभ को भयंकर महामारी में धकेल दिया, इसका कारण सॉर्स कोव-2 बताया गया। उन्होंने बताया कि तीनों में तीन समानताएं हैं, एक वायरस, दूसरा श्वसन तंत्र पर संक्रमण तथा तीसरा इसका उत्पत्ति स्थल।
यहां यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि संपूर्ण प्रकृति में अनेक प्रकार के विषाणु व जीवाणुओं की उपस्थिति है। उन्होंने विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक पत्रिका ‘नेचर’ में उद्घाटित तथ्यों पर बताया है कि वर्तमान कोरोना वायरस मानव द्वारा प्रयोगशाला में तैयार करके सीधे ही मनुष्य में प्रवेश का माध्यम दिया गया अर्थात् यह संक्रमण मानवीय कृत्यों का परिणााम है न कि कोई प्राकृतिक आपदा।
उन्होंने बताया कि वन्यप्राणी तो इस वायरस को अपने भीतर रखते हुए उसे फैलने से रोकते हैं। वन्यप्राणियों के किसी भी प्रकार से मनुष्य के सीधे संपर्क में आने पर भी इस वायरस की आक्रामकता नहीं होती क्यांेकि यह वन्यप्राणी से सीधे मनुष्य में पहुंच ही नहीं सकता। इस स्थिति में चमगादड़ को कोरोना वायरस संक्रमण के लिए खलनायक के रूप में प्रदर्शित करना मनुष्य द्वारा स्वयं की चूक पर पर्दा डालने जैसा ही है।
हर जीव में है वायरस का भंडार:
डॉ. मेहरा ने बताया कि वैज्ञानिक शोध पत्रों में यह साबित हो गया है कि न केवल वन्यप्राणी अपितु पालतु पशुओं तथा मनुष्यों में भी अनेक प्रकार के विषाणुओं का भंडारण होता है। कोई भी विषाणु मानवीय हस्तक्षेप अथवा पर्यावरणीय कारकों से स्वयं को उत्परिवर्तित करके ही संक्रामक रूप में लेता है। वर्तमान महामारी का कारण नोवल कोरोना विषाणु भी इसी का परिणाम है। उन्होंने यह भी बताया कि मनुष्य में संक्रमण फैलाने हेतु विषाणु कभी भी वन्यजीव से सीधे नहीं आता। इसे कई चक्रों के माध्यम से गुजरना पड़ता है तब वह मनुष्य तक प्राकृतिक रूप से पहुंचता है। उन्होंने बताया कि इनमें से कुछ विषाणु लाभदायक है तो कुछ हानिकारक भी। हानिकारक विषाणु या जीवाणुओं के लिए प्रकृति ने पोषण हेतु संसाधनों की भरमार कर रखी है, इसीलिए इनका सीधे ही मनुष्य में प्रवेश पाना अत्यंत कठिन होता है। जब तक कि हानिकारक विषाणु या जीवाणुओं के संसाधन को मनुष्य नहीं छेड़ता अथवा समाप्त करता है तब तक इन संक्रमणों का मनुष्य में प्रवेश पाना संभव नहीं है। यह प्रकृति का नियम है।
चमगादड़ और वन्यजीव बीमारियों से देते हैं सुरक्षा:
डॉ. मेहरा ने बताया कि हमें इस पर भी ध्यान देना है कि ऐसे वन्य प्राणियों को समाप्त नहीं होने देना होगा क्योंकि यह ही मनुष्य को अनेक बीमारियों से सुरक्षा दे रहे हैं। अगर रोग जनित विषाणु और जीवाणुओं के होस्ट प्राणियों को समाप्त किया तब यही सूक्ष्मजीव सीधे अपने जीवन हेतु मनुष्य को ग्रसित करेंगे। यहां हमें समझना चाहिए कि प्रकृति ने सभी जीवों को एक भूमिका दी है। चमगादड़ के कारण मनुष्य को अनेक लाभ मिलते हैं। यह जीव परागण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसके कारण ही प्रकृति में स्थित अनेक पादप प्रजातियां पल्लवित हो रही हैं। ऐसे में चमगादड़ को खलनायक नहीं मानते हुए इसके संरक्षण पर ध्यान देना जरूरी है।
चमगादड़: फेक्ट फाईल:
डॉ. मेहरा ने बताया कि चमगादड़ एक स्तनधारी प्राणी है। यह पक्षी नहीं अपितु उड़ने वाला एकमात्र स्तनधारी जीव है। विश्वभर में चमगादड़ों की 1411 प्रजातियां है वहीं भारत में 128 और राजस्थान में इसकी 25 प्रजातियां पाई जाती है। चमगादड़ फल, फूलों का नेक्टर और किट खाते हैं। किट खाने वाली इसकी प्रजातियां एक रात में एक हजार से अधिक मच्छर खाती है और मनुष्यों को इनसे होने वाली बीमारी से बचाती हैं।
वन विभाग ने भी जारी की एडवायज़री:
इधर, वन विभाग के अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक अरिन्दम तोमर ने वन विभाग के समस्त संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि कोरोना महामारी के दौरान कुछ रिपोर्टों में चमगादड़ को इस बीमारी के लिए जिम्मेदार बताया गया है, जिसके कारण आम जनता में चमगादड़ के प्रति प्रतिशोध की भावना बनी है। कुछ स्थानों पर यथा चुरू में जनता द्वारा चमगादड़ों को हटाने या भगाने के समाचार भी आए हैं। तोमर ने बताया है कि चमगादड़ प्रकृति में परागण, बीज संवाहक एवं अन्य कई महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जबकि इस प्रकार की कोई प्रमाणिक शोध भी अब तक नहीं हुई है जिसमें चमगादड़ों को कोरोना वायरस का कारक माना गया हो। उन्होंने निर्देश दिए हैं कि इन परिस्थितियों में आम जनता से चमगादड़ों के विरुद्ध फैली भ्रांतियों को दूर करने की समझाइश की जाए। उन्होंने कहा है कि यदि चमगादड़ों को मारने अथवा भगाने इत्यादि का कोई प्रकरण संबंधित अधिकारी की जानकारी में आता है तो नियमानुसार दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई किया जाना सुनिश्चित करें।
जानकारी माध्यम : कमलेश शर्मा