शहर के नगर सेठ केशवराय और राजा दीपनाथ का हरिहर मिलन, भगवान दीपनाथ को चढाई तुलसी की माला, केशवराय का बिलपत्र से हुआ श्रृंगार

प्रतापगढ़। कल रात वैकुंठ चतुर्दशी पर हरिहर मिलन पूरा हुआ. शहर के दीपेश्वर महादेव से बिल्वपत्र लेकर निकली बाबा की सवारी शहर के नगर सेठ केशवराय मंदिर पंहुची जहां तुलसी की माला दीपेश्वर महादेव को चढ़ाई गई.
आरती के दौरान भगवान् केशवराय का बिल्वपत्र और भगवान दीपेश्वर महादेव का हिमाचल की तरह श्रृंगार व आरती की गई. हरि को सत्ता सौंपने के बाद माना जाता है कि भगवान महादेव आज से हिमालय पर चले जाते हैं, इसलिए उनका हिमालय स्वरूप शृंगार किया जाता है. भगवान दीपेश्वर को रुद्राक्ष की मालाएं पहनाई गई.
बैकुंठ चतुर्दशी
कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी का त्योहार मनाया जाता है. इस पावन पर्व को लेकर मान्यता है कि भगवान शिव ने बैकुंठ चतुर्दशी को श्री हरि भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया. मान्यता है कि चातुर्मास के दौरान भगवान श्री हरि विष्णु सृष्टि का भार भगवान शिव को सौंप देते हैं. इन चार मास में सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं. देवउठनी एकादशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु जागते हैं और बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव सृष्टि का भार पुन: भगवान श्री हरि विष्णु को सौंपते हैं.
कहा जाता है कि कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को जो भी बैकुंठ चतुर्दशी व्रत का पालन करते हैं उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। इस तिथि को भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र प्राप्ति का पर्व माना गया है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिलती है। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव और श्री हरि विष्णु एक रूप में रहते हैं।
इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु और भगवान शिव दोनों की पूजा की जाती है। इस दिन हरिहर मिलन होता है। बैकुंठ चतुर्दशी का व्रत रखने से बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। इस दिन श्राद्ध और तर्पण का विशेष महत्व है। इसी दिन महाभारत के युद्ध के बाद मारे गए लोगों का भगवान श्रीकृष्ण ने श्राद्ध कराया था। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान कर दान-पुण्य करना चाहिए।
इससे समस्त पापों का प्रायश्चित होता है। बैकुंठ चतुर्दशी को व्रत कर तारों की छांव में तालाब, नदी के तट पर 14 दीपक जलाने चाहिए। मान्यता है कि जो एक हजार कमल पुष्पों से भगवान श्री हरि विष्णु का इस दिन पूजन कर भगवान शिव की अर्चना करते हैं वे बंधनों से मुक्त होकर बैकुंठ धाम पाते हैं। इस त्योहार को लेकर पौराणिक कथा के अनुसार एक बार नारद जी बैकुंठ पंहुचते हैं।
भगवान विष्णु उनके आने का कारण पूछते हैं तो नारद जी कहते हैं प्रभु ऐसा सरल मार्ग बताएं, जिससे सामान्य भक्त भी आपकी भक्ति कर मुक्ति पा सके। श्री हरि बोले- कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन करेंगे उनके लिए स्वर्ग के द्वार साक्षात खुले होंगे। इसके बाद श्री हरि जय-विजय को बुलाते हैं और कार्तिक चतुर्दशी को स्वर्ग के द्वार खुला रखने का आदेश देते हैं।