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इस मंदिर में होती है अंगूठे के बराबर दीए के आकार के शिवलिंग की पूजा, अनोखा है इतिहास

Pratapgarh
इस मंदिर में होती है अंगूठे के बराबर दीए के आकार के शिवलिंग की पूजा, अनोखा है इतिहास
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शहर के पश्चिम में दीपेश्वर तालाब के किनारे दो जलधाराओं के संगम स्थल के निकट दीपेश्वर का शिव मंदिर बना हुआ है, जो विशालकाय कई किस्मों के पेड़ों के बीच अवस्थित है. यहां मंदिर में शिवलिंग अंगूठे के आकार का है, जिसकी पूजा-अर्चना की जाती है. 

शिवलिंग की जलाधारी का शिल्प भी अनूठा है. सुबह-शाम यहां पूजा-अर्चना के दौरान वातावरण में मधुरता घुल जाती है. वैसे यहां पहुंचते ही प्राकृतिक वातावरण मन आनंदित हो जाता है लेकिन मंदिर के निकट बनी लघु देवकुलिकाएं यहां तीर्थ स्थल का अहसास कराती हैं. 

कहा जाता है कि सन् 1765 में इस शिवलिंग की खोज दरबार सावंत सिंह द्वारा की गई थी. इस शिवलिंग का आकार एक दिये के समान है इसलिए इसका नाम दीपेश्वर महादेव रखा गया है. शिवलिंग की खोज के पीछे भी एक अनोखी कथा है. कहा जाता है कि किस जगह आज दीपेश्वर महादेव का मंदिर है, वहां पहले जंगल हुआ करता था और हर रोज शिवलिंग के ऊपर एक गाय जाकर खड़ी हो जाती थी और गाय के स्तनों से दूध की धारा शिवलिंग के ऊपर गिरती थी. 

जब इस बारे में चरवाहे द्वारा दरबार सावंत सिंह को बताया गया तब उन्होंने शिवलिंग की पूजा अभिषेक कर दीपनाथ महादेव मंदिर की स्थापना की. मंदिर की स्थापना के बाद सालों से संतान नहीं होने का दुख झेल रहे दरबार सावंत सिंह को पुत्र प्राप्ति हुई, जिस पर दरबार सावन सिंह ने भगवान दीपेश्वर महादेव के नाम के आधार पर अपने पुत्र का नाम कुंवर दीपसिंह रखा. 

प्रतापगढ़ का राजा कहलाते हैं भगवान दीपेश्वर महादेव 
बताया जाता है कि बाद में मंदिर का बाहरी निर्माण होलकर वंश की रानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा करवाया गया था. भगवान दीपेश्वर महादेव को प्रतापगढ़ का राजा भी कहा जाता है और इसके पीछे मुख्य वजह है किस जिले में कोई भी शुभ कार्य भगवान दीपेश्वर की पूजा के बिना नहीं होते हैं. राजघराने का समय भी प्रतापगढ़ में राजा की जगह दरबार हुआ करते थे और इसकी भी वजह यह थी कि प्रतापगढ़ के राजा केवल भगवान दीपेश्वर महादेव हैं. इसलिए रियासत कालीन विराज दरबारों में भी राजा को दरबार कहा जाता था. इतिहासविद् के अनुसार बाद में दरबार सावन सिंह के पुत्र दीपसिंह ने यहां मंदिर के सामने दीप स्तम्भ भी बनवाया. अठखेली करती जलधारा को रोक कर दीप सरोवर बनवाया गया, जो दीपेश्वर तालाब के नाम से जाना जाता है.

गणपति की प्रतिमा भी काफी चमत्कारी
यह मंदिर देव स्थान विभाग के अधीन है. वैसे तो यहां वर्षपर्यंत ही विभिन्न आयोजन होते हैं और सुबह से शाम तक श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है लेकिन यहां महाशिवरात्रि और सावन मास में विभिन्न आयोजन के तहत मेले सा माहौल रहता है. इसी परिसर में खड़े गणपति की प्रतिमा भी काफी चमत्कारी है. 

सुरेंद्र चंडालिया का कहना है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मनोकामनाएं पूरी होती हैं. यहां दीपेश्वर परिसर में विशालकाय पेड़ और कई किस्मों के पौधे, लताएं विद्यमान हैं. इनमें कई जीव-जंतु आश्रय पाते हैं. कई प्रकार के पक्षियों की चहचहाहट दिनभर गुंजायमान रहती है.

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